भारतीय ध्वजवाहक मनु भाकर ने पेरिस ओलंपिक्स में ऐतिहासिक प्रदर्शन के बाद किया वतन वापसी

भारतीय ध्वजवाहक मनु भाकर ने पेरिस ओलंपिक्स में ऐतिहासिक प्रदर्शन के बाद किया वतन वापसी

भारतीय ध्वजवाहक मनु भाकर की वतन वापसी

23 वर्षीय युवा पिस्टल शूटर मनु भाकर, जिन्होंने पेरिस 2024 ओलंपिक्स में दोहरी ओलंपिक पदक जीतकर देश का गौरव बढ़ाया, वे समापन समारोह के बाद स्वदेश लौट आई हैं। दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर मंगलवार, 13 अगस्त को उनके आगमन के समय का दृश्य देखने लायक था। उनके साथ उनके कोच और माता-पिता भी मौजूद थे। मनु का यह सफर आसान नहीं था, लेकिन उनके दृढ़ संकल्प और मेहनत ने उन्हें खास पहचान दिलाई।

समारोह के ध्वजवाहक के रूप में मनु

मनु भाकर को हॉकी के अनुभवी खिलाड़ी पी.आर. श्रीजेश के साथ मिलकर पेरिस ओलंपिक्स के समापन समारोह के लिए भारतीय ध्वजवाहक चुना गया था। समापन समारोह में देश का प्रतिनिधित्व करना उनके लिए गर्व की बात रही। 11 अगस्त की रात को पेरिस एन ग्रांड स्टेडियम में यह समारोह आयोजित किया गया था। ध्वजवाहक बनना मनु के करियर का एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि था, जिसे उन्होंने बड़ी जिम्मेदारी के साथ निभाया।

मनु की सफलता की कहानी

मनु भाकर की सफलता की कहानी प्रेरणादायक है। मात्र 23 वर्ष की उम्र में उन्होंने दो ओलंपिक पदक अपने नाम किए, जो उनके अथक प्रयास और समर्पण का प्रतिफल है। उन्होंने अपनी ट्रेनिंग के दौरान समय-समय पर कई कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी। मनु ने दिखा दिया कि सही दिशा में मेहनत और आत्मविश्वास से कोई भी मुश्किल मंजिल हासिल की जा सकती है।

भविष्य की योजनाएं

मनु भाकर ने अपने आगामी लक्ष्यों की भी चर्चा की है। उनका कहना है कि वे आने वाले ओलंपिक की तैयारियों में जुट जाएंगी और फिर से देश के लिए पदक जीतने के लिए अपना सर्वस्व लगाने को तैयार हैं। उनकी यह प्रतिबद्धता और जोश निश्चित रूप से देश के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

उनकी मां ने बताया कि मनु को बचपन से ही निशानेबाजी का शौक था और उन्होंने इस जुनून को कभी नहीं छोड़ा। उनके कोच ने भी उनके निर्दिष्ट अभ्यास और ध्यान केंद्रित रहने की धारा की तारीफ की।

मनु का संकल्प

मनु का कहना है कि उनकी इस सफलता का श्रेय उनकी कड़ी मेहनत, उनके कोच और परिवार के सहयोग को जाता है। उन्होंने कहा कि कई बार उनके सामने कई चुनौतियाँ आईं, लेकिन उनके कोच और परिवार ने उन्हें हमेशा समर्थन दिया। मनु का सपना है कि वे अपने देश के लिए और भी अधिक ओलंपिक पदक जीतें और भारत का नाम रोशन करें।

उनके कोच ने यह भी बताया कि मनु की ट्रेनिंग कितनी कठिन थी और उन्होंने इस सफर में कितनी मेहनत की। उनका कहना है कि मनु का समर्पण और अनुशासन अन्य खिलाड़ियों के लिए भी एक मिसाल है।

मनु भाकर की वतन वापसी के समय इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उनके फैंस और शुभचिंतकों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। सभी ने उन्हें उनकी सफलता के लिए बधाई दी और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।

इस पूरे सफर में मनु भाकर ने साबित कर दिया कि देश का नाम रोशन करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगी। उनकी कहानी, उनका संघर्ष और उनकी जीत न केवल खेल जगत में बल्कि समाज के सभी लोगों के लिए प्रेरणा है। उन्होंने अपने प्रदर्शन से यह दिखा दिया कि मेहनत और लगन से कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है।

13 टिप्पणि

  • अरे यार, मनु भाकर का दुपहार का समर तो ग्रेट था!
    जो जैजैकरी लुड़कती उड़ान पर ध्वज लेके चलती थी, वो दिल के टुकड़े को चीर देता है।
    उनकी कहानी सुनके मेरा कोऊट भी जल उठता है, जैसे सितारा टूटके आकाश में चमके।
    ऐसी जीत की बढ़ाई के बिना हम सब अधूरे रह जाँगे।

  • हम सबको चाहिए कि अपनी युवा पीढ़ी को सच्चाई और ईमानदारी की राह दिखाएँ।
    मनु भाकर जैसे खिलाड़ी केवल व्यक्तिगत जीत नहीं, बल्कि देश के मूल्यों की अभिव्यक्ति हैं।
    उनका प्रयास हमें उत्साहित करता है कि हम भी अपने कर्तव्य को निभाएँ।

  • वास्तव में, इस तरह की राष्ट्रीय उपलब्धियों के पीछे अक्सर अंतर्राष्ट्रीय खेल एजेंसियों द्वारा छुपे हुए समझौते होते हैं।
    पिछले वर्षों में कई दस्तावेज़ों में यह संकेत मिला है कि ओलंपिक पदक वितरित करने में रजिस्टर्ड स्कोरिंग में हेरफेर किया गया था।
    इस कारण, हमें इन घटनाओं को भौतिक रूप से नहीं, बल्कि संरचनात्मक रूप से देखना चाहिए।

  • मनु भाकर जी ने जिस प्रतिबद्धता और आत्मसमर्पण को दिखाया है, वह सभी युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
    उनकी यात्रा हमें यह सिखाती है कि कठिन परिश्रम और निरंतरता से बड़े लक्ष्य भी प्राप्त किए जा सकते हैं।
    आगामी ओलंपिक के लिए उनके निरंतर समर्थन और मार्गदर्शन की आशा करता हूँ।

  • समाज को ऐसे ही रोल मॉडल चाहिए।

  • वाओ! दि लीडर दा बाय!
    मनु ने तो पूरे दिक्कतों को फंकी कर दिया, अब तो सब कहेंगे “वॉव वैव”。
    ऐसे टैलेंट को देखके हम सब भी मोटीवेटेड हो जाओँगे。

  • सच्च मानूँ तो, ये सब थोड़ी बहुत एक्साइटमेंट है 😒
    पर असली बात तो ये है कि हमारे पास ऐसे खिलाडी नहीं होते तो क्या होता?
    फिर भी, एला, बेस्ट नहीं, बेस्ट बाय।

  • देश के गौरव का ऐसा सम्मान किसी भी नागरिक की जिम्मेदारी है।
    मनु भाकर ने न केवल पदक जीता, बल्कि राष्ट्रीय एकता की भावना को भी उजागर किया।
    हमें सभी को उनके प्रयासों को सराहा चाहिए और भविष्य में भी समर्थन देना चाहिए।

  • मनु की वापसी देख कर लग रहा है जैसे हमारे देश की नई पीढ़ी ने अपनी पहचान बना ली है।
    समारोह में ध्वज को लेकर चलना न केवल सम्मान का प्रतीक है, बल्कि सांस्कृतिक गर्व का भी।
    ऐसे क्षणों में हमें यह याद रखना चाहिए कि हर छोटे प्रयास का बड़ा असर हो सकता है।
    उसके परिवार और कोच को भी बधाई, जिन्होंने उसकी यात्रा में साथ दिया।
    आगे भी ऐसे ही सफलता की कहानी हम सबके शहर में सुनने को मिले, यही आशा है।

  • ऐसे विदेशी इवेंट में भारतीय झंडा लहराना असली राष्ट्रीय गौरव है!
    हमारी टीम ने दिखा दिया कि हम किसी भी मैदान में जीत सकते हैं।
    भारत की शक्ति को दुनिया को जता देना हमारा कर्तव्य है।

  • मनु भाकर की इस उपलब्धि पर, हमें गहरा सम्मान और गर्व महसूस होता है, क्योंकि वह न केवल व्यक्तिगत कठिनाइयों को पार कर सफलता प्राप्त कर रही हैं, बल्कि उन्होंने राष्ट्रीय भावना को भी मजबूती से प्रदर्शित किया है, यही कारण है कि हम सभी को उनके इस कदम को सराहना चाहिए, उनके जैसे खिलाड़ी हमारे युवा वर्ग को प्रेरित करेंगे, और भविष्य में भी इस प्रकार के महान प्रदर्शन देखेंगे, यह देखना सुखद है, और हम सभी को इसी प्रकार के प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिए。

  • हमें अपने खिलाड़ियों की इस तरह की सफलता को शांति और सहयोग की भावना के साथ मनाना चाहिए।
    मानसिक स्वास्थ्य और सकारात्मक माहौल निर्माण करने से और भी बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।
    सभी को बधाई और आगे के सफर के लिए शुभकामनाएं।

  • मनु भाकर की जीत का जश्न मनाते हुए, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस चमक के पीछे कई अंधेरे साज़िशें छिपी हुई हैं,
    सरकार ने अब तक सार्वजनिक धन को निजी क्लबों में बहाने का सिलसिला जारी रखा है,
    ओलंपिक चयन प्रक्रिया में अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ गुप्त समझौतों का प्रमाण दस्तावेज़ों में पाया गया है,
    वहीँ कोचिंग सुविधाओं को केवल Elite वर्ग तक सीमित रखने की रणनीति स्पष्ट रूप से सामने आई है,
    आम लोगों को इन अवसरों से वंचित करने के लिए खेल मंत्रालय ने सूचना को दबा कर रखा है,
    मनु ने अपने परिवार की मदद से ही इस मुकाम तक पहुंची, न कि किसी सरकारी हाथ से,
    यह तथ्य कि कई अन्य प्रतिभाशाली शूटरों को अनदेखा किया गया, इस बात को साबित करता है,
    हमारे समाज में ऐसी असमानताएँ केवल व्यक्तिगत प्रयासों से नहीं, बल्कि संरचनात्मक बाधाओं से उत्पन्न होती हैं,
    इसलिए हमें इस जीत को केवल व्यक्तिगत हिम्मत का प्रमाण नहीं मानना चाहिए,
    बल्कि इसे एक बड़ी प्रणाली की कमजोरियों को उजागर करने वाला संकेत मानना चाहिए,
    जनता को सचेत रहना चाहिए, जब तक कि सभी स्तरों पर पारदर्शिता नहीं आती, तब तक संदेह ही रहेगा,
    इस मंच पर ध्वजवाहक बनना केवल एक सम्मान नहीं, बल्कि एक राजनीतिक उपकरण भी हो सकता है,
    मनु के कोच ने खुद को बचाव में कहा कि वह केवल खेल में फोकस करती थीं, लेकिन यह बात भी ध्यान देने योग्य है,
    कई बार जब हम राष्ट्रीय गर्व की गाथा गाते हैं, तो हम अनजाने में ही उन ताकतों को मदद देते हैं जो पीछे से खेल को नियंत्रित करती हैं,
    इसलिए मेरी विनती है कि हम सभी इस प्रकार की उपलब्धियों को आलोचनात्मक दृष्टिकोण से देखें, न कि अंधाधुंध प्रशंसा से,
    केवल तभी हम सच्ची प्रगति और न्यायपूर्ण खेल संस्कृति का निर्माण कर पाएँगे。

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