फतुल्लाह गुलेन का जीवन और भूमिका
फतुल्लाह गुलेन एक प्रभावशाली इस्लामी गुरु थे जिनका जन्म 1941 में तुर्की के एर्ज़रूम प्रांत में हुआ था। अपने जीवन के प्रारंभिक चरण में, उन्होंने पारंपरिक धार्मिक शिक्षा में गहरी जानकारी प्राप्त की और तुर्की में शैक्षिक और सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय हो गए। उनकी महत्वाकांक्षा थी कि समाज में इस्लाम की भूमिका को आधुनिकता के साथ जोड़ा जाए। इसके तहत उन्होंने 'हिज़्मत' नामक आंदोलन की नींव रखी, जिसका उद्देश्य पश्चिमी-शैली की शिक्षा और उदार बाजारों का प्रसार करना था। यही उनका आंदोलन कई वर्षों तक लोगों के बीच लोकप्रिय रहा।
तुर्की के साथ संबंध और तख्तापलट का आरोप
गुलेन पहले तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगान के सहयोगी थे, लेकिन उनके संबंध तब बिगड़ गए जब एर्दोगान ने उन पर 2016 में तुर्की में सैन्य तख्तापलट की योजना बनाने का आरोप लगाया। यह तख्तापलट प्रयास तुर्की के इतिहास का एक खतरनाक मोड़ था, जिसमें लगभग 250 लोगों की जान चली गई। हालांकि, गुलेन ने हमेशा इन आरोपों का खंडन किया और कहा कि उनका तख्तापलट से कोई लेना-देना नहीं था। इसके बावजूद, एर्दोगान सरकार ने उनके 'हिज़्मत' को एक आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया।
हिज़्मत आंदोलन का प्रभाव और पतन
हिज़्मत आंदोलन ने तुर्की ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में अपनी जड़ें फैलाईं। उन्होंने तुर्किक गणराज्यों, मध्य एशिया, बाल्कनों, अफ्रीका और पश्चिम में स्कूल, छात्रावास, और मीडिया संस्थान खोले। लेकिन तख्तापलट के विफल प्रयास के बाद तुर्की सरकार ने उनके आंदोलन को पूरी तरह से ध्वस्त करने के लिए कई कठोर कदम उठाए। गुलेन आंदोलन के अनुयायियों को तुर्की की नौकरियों से निकाल दिया गया और उन पर सरकार की नीतियों के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया गया। इसके परिणामस्वरूप, उनके आंदोलन का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव भी कम होता गया।
गुलेन का निधन और प्रतिक्रिया
83 साल की उम्र में अमेरिका के एक अस्पताल में गुलेन का निधन हो गया। तुर्की के विदेश मंत्री हाकन फिदान ने पुष्टि की कि गुलेन का निधन हो गया है और उन्हें 'अंधेरे संगठन' का नेता बताया। फिदान ने इस दुःखद खबर पर तुर्की के युवाओं के लिए यह भी कहा कि गुलेन की मौत, उनपर एक 'जादू' को खत्म करेगा जिसने उन्हें 'धोखे' के रास्ते पर डाल दिया था। इसी बीच, गुलेन के समर्थकों के बीच इस खबर से गहरा शोक देखा गया, जबकि तुर्की सरकार के गुट इसे एक संघर्ष के अंत के रूप में देख रहे हैं।
भविष्य की अनिश्चितताएं
गुलेन का निधन तुर्की के राजनीतिक परिदृश्य में एक नई बहस को जन्म दे सकता है। क्या उनके आंदोलन के सिद्धांत, उनकी मृत्यु के बाद बने रह पाएंगे? और क्या तुर्की सरकार आगामी समय में इसके अनुयायियों के प्रति और अधिक सख्त रुख अपनाएगी? इन सब सवालों के जवाब समय ही बताएगा। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि फतुल्लाह गुलेन ने न केवल तुर्की, बल्कि व्यापक रूप से इस्लामी विश्व में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनके निधन से उत्पन्न होने वाले प्रभावों को लंबे समय तक समझने की ज़रूरत होगी।
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