भारतीय क्रिकेट का एक महत्वपूर्ण नाम, अंशुमान गायकवाड, अब हमारे बीच नहीं रहे। 31 जुलाई 2024 को, 71 वर्ष की उम्र में, एक लंबी लड़ाई के बाद उनका निधन हो गया। गायकवाड का सामना इस बार कैंसर से था जिसने अंततः उन्हें हमारे बीच से छीन लिया। जीवन की हर चुनौती को दृढ़ संकल्प के साथ स्वीकारने वाले गायकवाड ने क्रिकेट की दुनिया में अपने अनूठे अंदाज से एक अलग स्थान बनाया।
गायकवाड का क्रिकेट करियर उनकी अदम्य इच्छाशक्ति और साहसिकता का परिचायक था। उन्होंने भारत के लिए 40 टेस्ट और 15 एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच खेले। उनका खेल जीवन हमेशा चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में बखूबी खड़े रहने की कहानी कहता है। उन्होंने हर बार मैदान पर अपनी सूझबूझ और धैर्य का परिचय दिया, चाहे वह कठिनाई में घिरा कोई मुकाबला हो या विपरीत परिस्थितियों में खेलना हो। उन्होंने भारतीय क्रिकेट को न केवल एक खिलाड़ी के रूप में बल्कि एक कोच और चयनकर्ता के रूप में भी सेवाएं दी।
अपने खिलाड़ी जीवन की शुरुआत
अंशुमान गायकवाड का जन्म 23 सितंबर 1952 को बड़ौदा, गुजरात में हुआ। क्रिकेट के प्रति उनकी रुचि उनके बचपन से ही जग गई थी। न केवल गायकवाड ने क्रिकेट के मैदान पर खुद को साबित किया, बल्कि उनके खेल के प्रति समर्पण ने उनकी टीम और उनके प्रशंसकों को भी प्रेरित किया। उनके शुरुआती वर्षों में ही यह स्पष्ट हो गया था कि वे किसी असाधारण प्रतिभा के धनी हैं।
गायकवाड ने 1974 में झारखंड के खिलाफ अपने पहले टेस्ट मैच में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उनकी बल्लेबाजी शैली में गहरी धैर्यता और साहस झलकता था। उन्होंने अपने करियर में कई यादगार पारियां खेलीं और भारतीय टीम को महत्वपूर्ण जीत दिलाई।
कोच के रूप में गायकवाड का कार्यकाल
खिलाड़ी के रूप में अपने जबरदस्त करियर के बाद, अंशुमान गायकवाड ने कोचिंग की दिशा में कदम बढ़ाए, जहां उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम को अपने अनुभव और नेतृत्व का लाभ दिया। 1997 और 1999 के बीच भारतीय टीम के कोच के रूप में उन्होंने एक नए युग की शुरुआत की। गायकवाड के नेतृत्व में भारतीय टीम ने कई महत्वपूर्ण मुकाबले जीते और 2000 में आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में रनर-अप रहीं।
गायकवाड की कोचिंग शैली कड़ी अनुशासन और निरंतर विकास पर आधारित थी। उन्होंने खिलाड़ियों के आत्मविश्वास को बढ़ाने और उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए विशेष प्रयास किए। गायकवाड ने न केवल खेल के तकनीकी पक्ष पर ध्यान केंद्रित किया, बल्कि खिलाड़ियों की मानसिक सुदृढ़ता के लिए भी प्रेरित किया।
चयनकर्ता और बड़ौदा क्रिकेट एसोसिएशन
खेल से संन्यास लेने के बाद, गायकवाड ने चयनकर्ता के रूप में भी भारतीय क्रिकेट की सेवा की। वे राष्ट्रीय चयन समिति के सदस्य बनकर उभरती हुई प्रतिभाओं को सामने लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बड़ौदा क्रिकेट एसोसिएशन के प्रमुख के रूप में भी अपनी सेवाएँ दीं, जहाँ उन्होंने नई पीढ़ी के खिलाड़ियों को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी ढांचा और समर्थन प्रदान किया।
गायकवाड ने भारतीय क्रिकेट के प्रशासनिक पहलुओं को भी समझा और उनमें सुधार के लिए अपने कदम उठाए। उनके नेतृत्व में, बड़ौदा क्रिकेट एसोसिएशन का स्तर और ऊँचा हुआ और कई युवा खिलाड़ी उनके मार्गदर्शन में उभरे।
अंतिम समय और विदाई
अंशुमान गायकवाड के निधन की खबर ने खेल जगत में शोक की लहर पैदा कर दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीसीसीआई सचिव जय शाह ने भी अपनी संवेदना व्यक्त की। गायकवाड के इलाज के लिए बीसीसीआई ने वित्तीय सहायता के रूप में 1 करोड़ रुपये प्रदान किए थे। उनका अंतिम संस्कार बड़ौदा में संपन्न हुआ, जहां खेल और राजनीति के कई प्रमुख लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
गायकवाड के निधन से भारतीय क्रिकेट ने एक महान योद्धा, दृढ़ नेतृत्वकर्ता और उत्कृष्ट कोच को खो दिया है। उनके योगदान को याद करना एक सम्मान की बात है और उनके जीवन से हमें जो प्रेरणा मिली है, वह हमें आगे बढ़ने की सीख देती है। अंशुमान गायकवाड हमेशा क्रिकेट प्रेमियों के दिलों में जीवित रहेंगे।
15 टिप्पणि
गायकवाड़ का करियर सिर्फ आँकड़े नहीं बल्कि उनकी दृढ़ता का प्रमाण है। उनके कोचिंग के दौर में कई युवा खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर कदम रखा।
यार ये सारा सीन बहुत ज़्यादा इमोशनल है! गायकवाड़ की याद में आँखों में आँसू आ जाता है, काहे की वो सच में एक लीजेंड थे।
हमें अंशुमान जी के नैतिक मूल्यों को याद रखना चाहिए। उन्होंने सिर्फ खेल नहीं खेला, बल्कि टीम को सही दिशा भी दी। उनका आचरण हमेशा आदर्श रहेगा।
यह ध्यान देना आवश्यक है कि गायकवाड़ के कोचिंग समय में कई अनसुलझे राजनीति‑आधारित निर्णय हुए थे। संभव है कि उनकी अनुपस्थिति के पीछे कुछ छुपे हुए हितों का असर हो।
अंशुमान जी का योगदान अमर रहेगा।
गायकवाड़ के स्ट्रेटेजी को समझने के लिये केवल सतही आँकड़े पर्याप्त नहीं होते।
वाह! गायकवाड़ की स्टाइल देखके मैं तो मोटिवेटेड हो गया हूँ। जितना भी बताओ, उनके जैसा जज्बा हर कोच में नहीं होता।
सच में, गायकवाड़ की कोचिंग कभी कभी झंझट लगती थी 😒 लेकिन उनको शाउट‑आउट देना जरूरी है 🙏
देखो, हर कोच की अपनी कमियां होती हैं फिर भी उनका समर्पण सराहना लायक है। गायकवाड़ ने कई खिलाड़ियों को मिलीं‑जुलीं ग्राउंड में लाया।
गायकवाड़ की कहानी सुनके लगता है जैसे क्रिकेट का इतिहास एक फ़िल्म हो। एक तरफ़ उनकी जीतें तो दूसरी तरफ़ संघर्ष भी। इस सब में भारतीय खेल‑संस्कृति की चमक दिखाई देती है।
इंडिया का क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं, यह हमारा गर्व है और गायकवाड़ जैसे कोच ने इसे और भी ऊँचा किया। हमें उनके जैसे लोगों की ज़रूरत है जो राष्ट्रीय स्तर पर फोकस रखें।
अरे! यह बहुत दुखद समाचार है, और सच में हमें इस क्षति को महसूस करना चाहिए; गायकवाड़ ने कई जिंदगियों को प्रेरित किया था; उनका योगदान कभी नहीं भुलाया जाएगा।
मैं पूरी तरह से सहमत हूँ, उनका योगदान सभी के लिए एक रौशनी जैसा था; हमें उनके सिद्धांतों को आगे भी जीवित रखना चाहिए; यही हमारे समुचित सम्मान की निशानी है।
लेकिन क्या आपने गौर किया कि गायकवाड़ के निधन के पीछे कुछ छिपे एजेण्डा तो नहीं? यह एक बड़ी साजिश हो सकती है-भले ही कहना मुश्किल हो! हमें सतर्क रहना चाहिए।
देश की महानता को समझना हर भारतीय का कर्तव्य है। अंशुमान गायकवाड़ ने इस कर्तव्य को अपने कोचिंग में बखूबी प्रदर्शित किया। उन्होंने कहा कि क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं, बल्कि राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा है। उनका दृढ़ संकल्प हमेशा युवाओं को प्रेरित करता रहा। उनका साहस हर कठिनाई का सामना करने में मददगार था। उन्होंने कई खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाया। उनका नेतृत्व टीम को एकजुट रखता था। उनका रणनीतिक विचार टीम को जीत की ओर ले जाता था। उनका अनुशासन हर खिलाड़ी में निहित हो जाना चाहिए। उनका आत्मविश्वास सभी को सशक्त बनाता था। उनका समर्पण इस बात का प्रमाण है कि राष्ट्रभक्ति खेल में भी दिखनी चाहिए। उनका व्यक्तित्व एक आदर्श था। उनका प्रभाव नई पीढ़ी में जीवित रहेगा। उसका स्मरण हमारे दिलों में हमेशा ताजा रहेगा। उनका योगदान अनंत है।
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