भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 8 अगस्त 2024 को अपनी नवीनतम मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की द्विमासिक बैठक में महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए रेपो दर को 6.5% पर अपरिवर्तित रखा है। रेपो दर वह दर है जिस पर केंद्रीय बैंक बैंकों को अल्पकालिक ऋण प्रदान करता है। मौजूदा आर्थिक स्थिति और मुद्रास्फीति की प्रवृत्तियों को देखते हुए यह निर्णय लिया गया, जिसमें खुदरा मुद्रास्फीति की स्थिति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
खुदरा मुद्रास्फीति और रेपो दर
खुदरा मुद्रास्फीति, जिसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) द्वारा मापा जाता है, जून 2024 में 5.08% के चार महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी। यह वृद्धि मुख्य रूप से खाद्य मुद्रास्फीति के कारण थी, जो सब्जियों और दालों के बढ़ते दामों के चलते 9.36% तक पहुँच गई। ऐसी स्थिति में आरबीआई ने कड़ी निगरानी बनाए रखते हुए रेपो दर को अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया।
इस संदर्भ में, ऐसे भी सुझाव थे कि ऊँची ब्याज दरें आर्थिक वृद्धि में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं। कुछ एमपीसी सदस्यों ने ब्याज दरों को कम करने की वकालत भी की, लेकिन अंततः समिति के छह सदस्यों में से चार ने दरें स्थिर रखने के पक्ष में मतदान किया। ऐसे में आरबीआई के लिए यह महत्वपूर्ण था कि वह मुद्रास्फीति पर नियंत्रण बनाए रखते हुए अर्थव्यवस्था की वृद्धि को भी ध्यान में रखे।
वित्त वर्ष 25 की जीडीपी वृद्धि का अनुमान
आरबीआई ने वित्त वर्ष 2025 के लिए जीडीपी वृद्धि का अनुमान 7.2% निर्धारित किया है। यह अनुमान भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूत वृद्धि गति को दर्शाता है। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि मौद्रिक नीति समिति का निर्णय देश की आर्थिक स्थिरता और सतत विकास को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लिया गया है।
इसके अलावा, वैश्विक आर्थिक स्थितियों और खाद्य मुद्रास्फीति की बनी अनिश्चितता के कारण आरबीआई का आक्रामक रूप से दरों में कटौती करने से बचना एक समझदारी भरा कदम प्रतीत होता है। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने नीति निर्णयों पर और जानकारी देने के लिए दिन के 12 बजे एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की।
आर्थिक परिस्थितियों की स्थिति
वर्तमान समय में, भारतीय अर्थव्यवस्था विभिन्न वैश्विक और घरेलू चुनौतियों से जूझ रही है। बढ़ती मुद्रास्फीति, विशेषकर खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि चिंता का विषय बनी हुई है। इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में बढ़ती अनिश्चितता भी स्थितियों को जटिल बना रही है। ऐसे में आरबीआई के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वह संतुलन बनाए रखे ताकि आर्थिक स्थिरता बनी रहे और विकास की गति प्रभावित न हो।
एमपीसी की इस बैठक में लिए गए निर्णय भविष्य में होने वाली आर्थिक चुनौतियों से निपटने की तैयारी को दर्शाते हैं। हालांकि, यह भी देखा जा रहा है कि उच्च ब्याज दरें ऋण लेने की लागत को बढ़ा सकती हैं, जिससे निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
भविष्य की दिशा
आरबीआई की इस निर्णयशीलता के बाद वित्तीय बाजारों की प्रतिक्रिया भी महत्वपूर्ण होगी। बाजारों को यह देखना होगा कि केंद्रीय बैंक भविष्य में किस प्रकार की नीतियां अपनाता है। भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने भविष्य की आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए घोषणाएं की हैं, जिससे साफ संकेत मिलता है कि आरबीआई आने वाले समय में भी सतर्क और सक्रिय रहेगा।
अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषि, उद्योग, सेवाएं आदि में वृद्धि की संभावनाओं पर भी विचार किया जा रहा है। आरबीआई का यह निर्णय बाजार में स्थिरता बनाए रखने और विकास की दिशा को सही मार्गदर्शन देने के उद्देश्य से रहा है। ऐसे में आने वाले समय में नीतिगत फैसलों का देश की आर्थिक स्थिति पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा।
उपसंहार
आरबीआई एमपीसी की इस बैठक में लिया गया निर्णय एक सुदृढ़ और विकसित अर्थव्यवस्था की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। रेपो दर को स्थिर रखने की रणनीति ने यह सुनिश्चित किया है कि मुद्रास्फीति नियंत्रित रहे और विकास की गति में अवरोध नहीं आए। हालांकि, अत्यधिक मुद्रास्फीति और उच्च ब्याज दरों के बीच संतुलन बनाना आरबीआई के लिए एक सतत चुनौती बना रहेगा। ऐसे में, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भविष्य में आरबीआई किस तरह की नीतिगत फैसले लेता है ताकि देश की आर्थिक स्थिरता और समृद्धि को बनाए रखा जा सके।
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