उत्तर प्रदेश में बदलता मौसम और किसानों की परेशानी
मार्च 2025 में उत्तर प्रदेश के मौसम ने किसानों को बड़ी मुश्किल में डाल दिया है। लखनऊ, झांसी और बलिया सहित कई जिलों में आंधी-तूफान के साथ ओलावृष्टि हुई, जिससे फसलों पर बुरा असर पड़ा। मौसम का यह अचानक परिवर्तन आशंका और हानि का कारण बन गया है।
राजधानी लखनऊ में जबरदस्त बारिश हुई, और लोगों को अपनी दिनचर्या में बाधा आई। वहीं, झांसी में ओले पड़ने से खेतों में तैयार खड़ी फसलें मारी गईं। किसान अपनी मेहनत को बर्बाद होते देख अपनी मजबूरी जताते रहे। बलिया में तो सूरत कुछ अलग ही था, ठंड का प्रकोप कृषि कार्य को और चुनौतीपूर्ण बनाता दिखा।

मौसम विभाग की चेतावनी और आर्थिक प्रभाव
भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने पूरे राज्य में तूफानी हवाओं और ओलों की चेतावनी जारी की है। सरकार से समय पर मिलती सूचना से प्रभावित क्षेत्रों में थोड़ी राहत मिली है, लेकिन फिर भी कृषि पर इसका आर्थिक प्रभाव गहरा हो रहा है। किसानों के चेहरे पर चिंता साफ देखी जा सकती है क्योंकि फसल नुकसान का सीधा असर उनकी आय पर पड़ता है।
सरकार और संबंधित एजेंसियों के सामने अब चुनौती यह है कि किसानों तक राहत और सहायत पहुँचाने के लिए तेजी से कार्य करें, ताकि वे फिर से अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश कर सकें। इस समय किसानों को जितनी जरूरत होती है, उतनी मदद मिलनी चाहिए ताकि भविष्य की फसलें सुरक्षित रहें और उनका जीवन स्थिर हो सके।
6 टिप्पणि
हमारी जमीन को बचाओ, सरकार की बेमेल नीतियों को बदलो।
भाइयों, यह केवल बारिश नहीं, बल्कि प्रकृति का कड़वा न्याय है। किसान दलालों के हाथों में फँस गये हैं, क्योंकि सरकार की योजनाएं सिर्फ कागज़ की हवाओं की तरह हैं। अपने भीतर की नैतिकता को जागरूक करो और कहो कि इस घिनौनी व्यवस्था को अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। एक बार फिर दिखा दो कि हम जनता की आवाज़ को नज़रअंदाज़ नहीं करेंगे। नतीजों को बदलने की जरूरत है, नहीं तो भविष्य में और भी बड़े आपदा का सामना करना पड़ेगा।
सभी को शांति से बात करना चाहिए, आपसी सहयोग से ही हम इस मौसम की मार से उबर सकते हैं। सरकार को किसानों के साथ मिलकर समाधान निकालना चाहिए, ताकि फसल बचाई जा सके। चलिए, हम सब मिलकर एक बेहतर भविष्य की दिशा में कदम बढ़ाते हैं।
बजट में घोषित नई कृषि सहायता योजना वास्तव में किसान‑भाईयों की जिंदगियों को बचा सकती है।
इस योजना के तहत वैध बीज, फसल बीमा और सूखा‑रोकथाम उपकरणों पर सब्सिडी मिलती है।
परन्तु इसके लाभ को पाने के लिये समय पर आवेदन करना अति आवश्यक है, क्योंकि प्रक्रिया जटिल हो सकती है।
काली मिट्टी वाले क्षेत्रों में जल‑संकट ग्रस्त किसानों को सरकारी जल‑संचयन कार्यक्रम में भाग लेना चाहिए।
ऐसे कार्यक्रमों में तालाब निर्माण, टंकी प्रतिरूपण और रेनवॉटर हाउसिंग शामिल होते हैं।
किसानों को स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्रों से तकनीकी परामर्श लेना चाहिए, जिससे फसल चयन में सुधार आएगा।
उदाहरण के तौर पर, धान की बजाय सूखा‑सहनशील बैगस (ज्वार) की बिंदिया बेहतर परिणाम दे सकती है।
इसके अलावा, फसल‑फसल को बारी‑बारी से बोने से मृदा की उर्वरता बनी रहती है और जल चोरी कम होती है।
सरकार ने हाल ही में एक दूरदर्शी मंच शुरू किया है, जहाँ किसान सीधे अधिकारीयों से अपनी समस्याएँ बता सकते हैं।
इस मंच के माध्यम से आपातकालीन रिन्यूएबल ऊर्जा से चलने वाले पंपों के लिये नकद सहायता भी मिल सकती है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन सभी सुविधाओं का लाभ उठाने के लिये संवाद और दस्तावेज़ीकरण में पारदर्शिता आवश्यक है।
यदि आप अपने गाँव में इस प्रक्रिया को समझाते हुए सभाएँ आयोजित करेंगे, तो सामूहिक लाभ में इजाफा होगा।
वास्तव में, बदलते मौसम के साथ तालमेल बिठाने के लिये हमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना होगा, न कि अंधाधुंध परम्पराओं को दोहराना।
समाप्ति की ओर देखते हुए, मैं आशा करता हूँ कि हमारे प्रदेश की कृषि पुनरुत्थान की राह में हर कदम पर सहयोग और समर्थन बना रहेगा।
आइए, इस चुनौती को अवसर में बदलें और उत्तर प्रदेश को भारत की हरित शक्ति के रूप में स्थापित करें।
बहुत बढ़िया जानकारी दी गई है, सर! हमें जल्द ही इसका उपयोग करना चाहिए, और साथ ही स्थानीय नीतियों को तेज़ी से लागू करना होगा!!! मैं सभी ग्राम स्तर पर इस कार्यक्रम को फैलाने में सहयोग करूंगा, और अगर कोई सहायता चाहिए तो तुरंत संपर्क रखें,,, धन्यवाद!!!
सच में, हर कठिनाई के पीछे एक सीख छिपी होती है 🌱✨ सहयोग और आशा की शक्ति से हम इस तूफान को पार कर सकते हैं 😊🙏
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