राजस्थान मॉनसून इस बार मारक बन गया। मौसमी औसत से 48% ज्यादा बारिश ने पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जिलों में बाढ़, भू-धंसान और सड़क तंत्र के ध्वंस का सिलसिला शुरू कर दिया। पिछले दो महीनों में 91 लोगों की जान गई, 51 जख्मी हुए, 38 घर ढहे और 47 पशुधन की मौत हुई। ताजा हालात सबसे ज्यादा बिगड़े सवाई माधोपुर, कोटा, बूंदी, टोंक, दौसा और चित्तौड़गढ़ में, जहां बारिश थमने के बाद भी पानी उतर नहीं रहा और गांवों के गांव टापू बन गए हैं।
सबसे ज्यादा चोट कहां लगी: धंसान, उफनती नदियां और डूबे शहर
सवाई माधोपुर में सुरवाल बांध के ओवरफ्लो ने खतरे की घंटी बजा दी। जदावता गांव के पास करीब 2 किलोमीटर लंबा भू-धंसान बना, जिसने खेतों और बस्तियों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। कई जगह 60 फुट तक की गहराई दिख रही है। सुरवाल, धनोली और गोगोर जैसे गांव पूरी तरह जलमग्न हैं। लोग छतों पर शरण लिए हैं, राशन और पीने का पानी हेल्पलाइन के भरोसे पहुंच रहा है। तेज धार के साथ बहा पानी कच्चे-पक्के मकान उखाड़ ले गया और खड़ी फसलों को चादर की तरह बिछाकर दबा दिया।
सड़कें नदी बन गईं। लालसोट-कोटा मेगा हाईवे एक लंबे हिस्से में बह निकला। टोंक के देओली के पास जयपुर-कोटा हाईवे पर घंटों तक पानी का समंदर रहा। कोटा-दौसा हाईवे के हिस्से कट गए। नतीजा—बचाव दलों तक पहुंचना भी मुश्किल। कोटा में चंबल नदी 132.80 मीटर पर पहुंची, जो 130.79 मीटर के खतरे के निशान से लगभग दो मीटर ऊपर है। दबाव कम करने के लिए कोटा बैराज से पानी छोड़ा गया, लेकिन निचले इलाकों में पानी और तेजी से भर गया।
बूंदी में हालात दर्दनाक रहे। हाईवे और कल्वर्ट धराशायी हुए, बाजारों की कतारें पानी में डूब गईं। ऐतिहासिक सांगेश्वर मंदिर सहित कई धार्मिक और पुरातात्विक ढांचे पानी में घिरे दिखे। दुकानें, घर और गोदाम—सब कुछ कीचड़ में फंस गया। बिजली और मोबाइल नेटवर्क कई इलाकों में रुक-रुककर चल रहे हैं, जिससे राहत मांगने के लिए भी लोग एक-दूसरे की मदद पर निर्भर हैं।
रेस्क्यू ऑपरेशन दिन-रात जारी हैं। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और सेना की टीमें नाव, ट्रैक्टर और पैदल मार्ग से पहुंच कर लोगों को निकाल रही हैं। जोखिम का अंदाजा इसी से लगाइए कि सुरवाल मेगा हाईवे पर राहत कार्य के दौरान एनडीआरएफ कर्मियों से भरी एक ट्रैक्टर-ट्रॉली पलट गई। कई जगह स्थानीय युवक रस्सी डालकर लोगों को बाहर खींच रहे हैं, बुजुर्ग और बच्चे पहले निकाले जा रहे हैं। अस्थायी शिविरों में सूखा राशन, कंबल और दवाएं भेजी जा रही हैं, लेकिन पानी की ऊंचाई और कटे हुए संपर्क मार्ग राहत की रफ्तार को बार-बार रोक रहे हैं।
मौसम विज्ञान की तस्वीर भी चौंकाती है। दौसा ने 24 घंटे में 285 मिमी बारिश दर्ज की, जो राज्य में सबसे ज्यादा रही। नागौर 173 मिमी, डेह 137 मिमी और जयपुर 92 मिमी पर रहे। भारतीय मौसम विभाग ने 22 जिलों के लिए रेड अलर्ट जारी किया है और कहा है कि अगले पांच दिन मानसून सक्रिय रहेगा। मतलब—पहले से भरे जलग्रहण क्षेत्रों में नई बौछारें और मुसीबत बढ़ा सकती हैं।
यह संकट सिर्फ राजस्थान तक सीमित नहीं रहा। जम्मू में सदी की सबसे तेज बारिश दर्ज हुई। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन परिसर में फंसे करीब 90 लोगों को एसडीआरएफ ने निकाला। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह किश्तवाड़ पहुंचे और बाढ़ पीड़ितों से मिले। पंजाब और हिमाचल प्रदेश में भी भूस्खलन और इमारतों के ढहने की खबरें आईं। साफ है, उत्तर भारत का बड़ा हिस्सा इस समय मानसून की मार झेल रहा है।

क्या वजह, क्या जोखिम और आगे की राह
पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी राजस्थान का भू-भाग चंबल, बनास और उनकी सहायक नदियों के कैचमेंट में आता है। लगातार तेज बरसात से मिट्टी पूरी तरह संतृप्त हो जाती है, फिर कहीं भी ढलान पर पानी गति पकड़ता है और सड़क, खेत, यहां तक कि बांधों के किनारे भी कटने लगते हैं। सुरवाल जैसे धंसान ऐसे ही संकेत हैं—ऊपर से भारी पानी, नीचे से मिट्टी का बहाव और बीच में बसा गांव। जब एक साथ कई बांधों से पानी छोड़ा जाता है, तो नदी का प्रवाह अचानक बढ़ता है और निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा कई गुना हो जाता है।
इन्फ्रास्ट्रक्चर का नुकसान फिलहाल भारी दिख रहा है। हाईवे और पुल टूटने से जरूरी सामान की सप्लाई प्रभावित है। दूध, सब्जियां, दवाएं—सब कुछ घूमकर पहुंच रहा है, जिससे कीमतें बढ़ने का दबाव बन सकता है। कई जल शोधन संयंत्रों में सिल्ट जमा हो गई है, जिसकी सफाई के बिना पेयजल सप्लाई सुरक्षित नहीं मानी जाती। कई जगह डिस्कॉम ने एहतियातन बिजली काटी है ताकि करंट लगने का खतरा कम हो।
खेती को भी बड़ा झटका है। कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ की सोयाबीन और मक्का, टोंक और दौसा के धान और बाजरा के खेत पानी में डूबे हैं। लंबे समय तक जलभराव से फसलें सड़ने लगती हैं, और कटाई का कैलेंडर बिगड़ जाता है। पशुधन की मौतें दर्ज हुई हैं—आगे पशु रोगों का खतरा बढ़ता है, इसलिए पशु-चिकित्सा टीमें टीकाकरण और चारा वितरण के लिए गांव-गांव जा रही हैं।
जन-स्वास्थ्य के नजरिए से अगले दो हफ्ते सबसे अहम हैं। जलजनित बीमारियां—डायरिया, हैजा, टाइफाइड—तेजी से फैल सकती हैं। सांप और कीड़े-बिच्छू ऊंचाई की तरफ आते हैं, इसलिए ग्रामीण इलाकों में सांप के काटने के केस बढ़ते हैं। शहरी बस्तियों में सीवर ओवरफ्लो का जोखिम अलग सिरदर्द है। जिले पानी के नमूनों की जांच, क्लोरीनेशन और मोबाइल हेल्थ यूनिट्स तैनात कर रहे हैं।
आईएमडी का रेड अलर्ट साफ संकेत है—भारी से अति भारी बारिश की संभावना, नदी-नालों में उफान और भूस्खलन/धंसान का जोखिम। इस समय सबसे कारगर है स्थानीय प्रशासन के निर्देशों का पालन, अनावश्यक यात्रा से बचना और ऊंचे-सुरक्षित ठिकाने पर रहना। जिला आपदा प्रबंधन नियंत्रण कक्ष 24x7 मोड में काम कर रहे हैं। प्रभावित परिवारों को मुआवजे का भरोसा दिया गया है—पहचान, सर्वे और सत्यापन के बाद भुगतान की प्रक्रिया शुरू होगी।
मौसम के विज्ञान की बात करें तो अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से आई नमी इस समय मानसूनी द्रोणिका के साथ उत्तर-पश्चिम भारत पर टिकी हुई है। जब लगातार कम दबाव के क्षेत्र बनते हैं, तो 24–48 घंटों में रिकॉर्ड बारिश हो सकती है। जलवायु परिवर्तन के दौर में ऐसे चरम घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ने की चर्चा गाढ़ी हो चुकी है—यही वजह है कि शहरी जलनिकासी, नदी तटीय जोन का मानक और बांध संचालन प्रोटोकॉल की सख्ती पर फिर बहस तेज होगी।
फिलहाल आम लोगों के लिए कुछ सीधी सलाह काम की रहेगी:
- बाढ़ के पानी को पार करने की कोशिश न करें—सिर्फ 30–40 सेमी गहराई की धार भी आदमी और वाहन बहा सकती है।
- पीने का पानी उबालकर या क्लोरीन टैबलेट से शुद्ध कर के ही इस्तेमाल करें।
- मुख्य स्विच बंद रखें, गीले कमरों में बिजली के उपकरण न चलाएं।
- घर में जरूरी दवाएं, टॉर्च, पावर बैंक और सूखा राशन तैयार रखें।
- सरकारी अलर्ट और स्थानीय कंट्रोल रूम के संदेशों पर ही भरोसा करें।
स्कूल-कॉलेज कई जगह बंद हैं, परीक्षाएं टल सकती हैं। रोडवेज ने प्रभावित रूट्स पर बसें अस्थायी रूप से रोक दी हैं और वैकल्पिक मार्गों से सीमित सेवा चला रहा है। निजी ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर ऊंचे किराए न वसूलें, इसके लिए जिले दरें तय कर रहे हैं। प्रशासन ने राहत कैंपों में महिलाओं और बच्चों के लिए अलग शेल्टर और सैनिटेशन की व्यवस्था शुरू की है, ताकि भीड़ में सुरक्षा और स्वास्थ्य दोनों सुनिश्चित रहे।
अगले पांच दिनों तक बारिश की गतिविधि बनी रह सकती है। ऐसे में चंबल, बनास और उनकी सहायक नदियों के जलस्तर पर लगातार निगरानी चलेगी। बांधों से नियंत्रित तरीके से रिलीज, निचले इलाकों में समय रहते अलर्ट और संवेदनशील ढांचों की बैरिकेडिंग—यही तीन कदम फिलहाल सबसे कारगर हैं। जैसे-जैसे पानी उतरता जाएगा, मलबा साफ करना, सड़कों की अस्थायी मरम्मत और पेयजल लाइनों की फ्लशिंग—ये काम तेज रफ्तार में करने होंगे, ताकि जनजीवन धीरे-धीरे पटरी पर लौट सके।
13 टिप्पणि
देश की बुनियादी बुनियाद तो दहाड़ रही है, पर सरकार की योजना बस कागज़ी वादे हैं, जमीन पर कोई असर नहीं दिख रहा। सर्कर को जवाब देना चाहिए, वरना ये बाढ़ की मार फिर दोहराई जाएगी।
भाइयों और बहनों, इस आपदा में हमने देखा कि स्थानीय समुदाय ने कितनी जानबूझ कर सहयोग दिया। बचाव दलों के साथ मिलके गांवों को ऊँची जगह पर ले जाना, पानी से बचाने के उपाय सभी ने अपनाए। सच में, यह भारतीय एकता का ज़ोरदार उदाहरण है; आशा है आगे भी ऐसे प्रयास जारी रहेंगे।
भाइयों, जो लोग अभी भी मानते हैं कि यह बाढ़ एक ‘असानी’ है, उन्हें तुरंत सूचना देना चाहिए,‑‑ बिना धीरज के‑‑ हम सबको मिलकर मदद करनी है, और अपनी सुरक्षा भी सुनिश्चित करनी है, नहीं तो फिर बाप रे बाप!
सभी को शांत रहना चाहिए, मदद जल्द ही पहुँच जाएगी 😊
हमारी जल संसाधन प्रबंधन में कड़ाई से नियम बनाना चाहिए, नहीं तो ये बार‑बार होने वाला दुष्कर्म कभी खत्म नहीं होगा।
समझता हूँ आपका गुस्सा, पर हमें भी वास्तविक राहत के उपायों पर फोकस करना चाहिए, जैसे अस्थायी ब्रीज बनवाना और जल निकासी के लिए त्वरित कार्यवाही।
बहुत बढ़िया बात कही आपने! मैं यही जोड़ूँगा कि स्थानीय स्कूलों को अस्थायी शैक्षिक कैंप में बदल दिया जाए जहाँ बच्चे पढ़ाई जारी रख सकें, और साथ ही स्वास्थ्य जांच भी की जा सके। इस तरह का समग्र दृष्टिकोण ही पुनर्प्राप्ति को तेज़ करेगा।
वास्तव में, आपकी बात में कुछ बात है, पर हम भी देख रहे हैं कि कई जगहों पर हेल्पलाइन नंबरों की पहुंच नहीं है, इसलिए आगे से इस पर भी ध्यान देना जरूरी है।
ईवेंट लॉग दिखाता है कि रिस्पॉन्स टाइम अभी भी औसत से नीचे है 😐
चलो, मिलकर इस समस्या का समाधान निकालते हैं! 💪 आपदा प्रबंधन में हर छोटी‑छोटी कोशिश काम आती है, और जब हम एकजुट होते हैं तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं लगती।
इस बाढ़ की वजह से सिर्फ इमारतों का नुकसान नहीं, बल्कि इंसानी रिश्तों का भी परीक्षण हो रहा है। जब लोग एक-दूसरे की मदद के लिए हाथ बढ़ाते हैं, तो यह दिखाता है कि सामाजिक बंधन कितने मजबूत हैं। लेकिन साथ ही हमें यह भी समझना चाहिए कि भविष्य में ऐसी आपदाओं को कम करने के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार आवश्यक है। सही drainage system की कमी, पुराने पुल और सड़कों की खिंचावशीलता, और नदीbanks की असुरक्षित स्थिति ने इस आपदा को और बढ़ा दिया। सरकार को चाहिए कि वह जल्द से जल्द मारवाड़ी क्षेत्रों में modern flood control mechanisms स्थापित करे, जैसे कि upstream reservoirs और controlled release valves। स्थानीय स्तर पर, समुदायों को जल सुरक्षा के बारे में जागरूक करने वाले workshops आयोजित किए जाने चाहिए। इसके अलावा, स्कूलों और कॉलेजों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में शिक्षा देना आवश्यक है, ताकि नई पीढ़ी इस जोखिम को समझ सके। बाढ़ से बचाव के लिए NGOs और निजी संस्थानों को भी सहयोग देना चाहिए, जैसे कि temporary shelters, medical camps और food distribution। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पिचकर‑पिचकर बाढ़ के बाद जलजनित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए स्वच्छता और डीसिंफेक्शन पर जोर देना चाहिए। इस समय, स्थानीय लोग पानी के नमूने लेकर रोग नियंत्रण केंद्रों को भेज रहे हैं, जो एक सकारात्मक कदम है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राहत कार्य में सभी स्तरों की पारदर्शिता बनाए रखी जाए, ताकि लोग भरोसा रखें कि सहायता उनके पास पहुँच रही है। अंत में, हमें इस अनुभव से सीख लेकर भविष्य में बेहतर तैयारी करनी चाहिए, ताकि किसी भी मोसम में जनता को सुरक्षित रखा जा सके। सुरक्षा उपायों के नियमित मूल्यांकन और अपडेट करने से दीर्घकालिक स्थिरता मिलने की संभावना बढ़ेगी। इस प्रकार, सामूहिक प्रयास और नीति सुधार के साथ, हम भविष्य की आपदाओं को नियंत्रित कर सकते हैं।
आपकी विस्तृत विश्लेषण ने दिखा दिया कि केवल तत्काल राहत नहीं, बल्कि दीर्घकालिक नियोजन भी उतना ही आवश्यक है। वैज्ञानिक मॉडल और सतत जल प्रबंधन के सिद्धांतों को अपनाकर हम इस तरह की आपदाओं को कम कर सकते हैं। मानवता ने प्रकृति को अनदेखा कर दिया, अब समय है कि हम तकनीकी एवं सामाजिक दोनों पहलुओं से पुनः परिभाषित करें। यह प्रक्रिया नीति निर्माताओं, इंजीनियरों और स्थानीय समुदायों के समन्वय से ही संभव है।
बिलकुल सही, मिलजुल कर काम करने से ही समाधान निकलेगा
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