जम्मू और कश्मीर में कांग्रेस-नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन की सरकार बनने के आसार, जानें कैसे बनी इस जीत की नींव

जम्मू और कश्मीर में कांग्रेस-नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन की सरकार बनने के आसार, जानें कैसे बनी इस जीत की नींव

जम्मू और कश्मीर चुनाव: कांग्रेस-एनसी गठबंधन की सफलता

जम्मू और कश्मीर के हालिया चुनाव परिणामों ने प्रदेश की राजनीतिक दिशा को नए सिरे से मोड़ा है। विपक्षी दल कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के गठबंधन ने चुनाव में उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है और वे नई सरकार के गठन की ओर अग्रसर हैं। यह गठबंधन अगस्त 2024 में घोषित किया गया था और तब से ही यह चर्चा में रहा है। इस गठबंधन की सबसे बड़ी खासियत यह रही है कि यह राज्य की विशेष धारा 370 और 35ए के निरसन के बाद के माहौल में जनता के विश्वास के साथ खड़ा था।

कांग्रेस की 32 और नेशनल कांफ्रेंस की 51 सीटों पर लड़ाई थी, जिसके तहत कुछ सीटें सहयोगी दलों के लिए छोड़ी गई थीं। इन दलों में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और जम्मू एवं कश्मीर पैंथर्स पार्टी शामिल हैं। परिणाम दर्शा रहे हैं कि गठबंधन का प्रभाव खासकर ग्रामीण और संवेदनशील इलाकों में देखा गया है। इन इलाकों में उनकी सफलता का कारण जनता की बीजेपी की नीतियों से असंतोष और राज्य की विशेष स्थिति की बहाली के प्रति आश्वासन है।

बीजेपी की नीतियों के खिलाफ जनादेश

कांग्रेस-एनसी गठबंधन की इस जीत को बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। राज्य की विशेष स्थिति की बहाली तथा बीजेपी की नीतियों के विरोध का यह समर्थन स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि जनता विकास और शांति की जरूरतों पर ही ध्यान देने वाली है। यह परिणाम बीजेपी के लिए एक चेतावनी भी है कि जनता सांप्रदायिक मुद्दों से ऊपर उठकर उन मुद्दों पर ध्यान दे रही है जो सीधे उनके जीवन से जुड़े हैं।

2019 में धारा 370 और 35ए के हटाए जाने के बाद जम्मू और कश्मीर में बढ़ती अनिश्चितता और अस्थिरता का माहौल रहा है। राष्ट्रीय दलों और क्षेत्रीय संगठनों ने इस कदम की आलोचना करते हुए इसे कश्मीरियों की आत्मनिर्णय का अधिकार छीनने वाला बताया है। इस बार का चुनाव इन राष्ट्रीय मुद्दों पर जनमत संग्रह की तरह पेश किया गया।

गठबंधन की रणनीति और प्रमुख चेहरे

कांग्रेस-एनसी गठबंधन की सफलता के पीछे ओमर अब्दुल्ला जैसे प्रमुख नेताओं की भूमिकाएं भी महत्वपूर्ण रही हैं। ओमर अब्दुल्ला ने राज्य की पुरानी स्थिति बहाल करने की जरूरत पर जोर दिया है और बीजेपी की नीतियों की आलोचना की है। वहीं, फारूक अब्दुल्ला ने भी अपने अनुभव और प्रभाव का बेहतर स्थिति में इस्तेमाल किया है।

गठबंधन का मानना है कि राज्य की समस्याओं को सुलझाने के लिए एक मजबूत राज्य सरकार की उपस्थिति जरूरी है जो स्थानीय लोगों की आवाज़ को सुने और वैश्विक मंच पर जम्मू और कश्मीर के मुद्दों को उचित तरीके से पेश करे। यह सरकार राज्य के विकास और शांति के लिए समाज के हर वर्ग का समावेश करने की दिशा में प्रयासरत होगी।

आगे की राह और चुनौतियाँ

गठबंधन का यह प्रदर्शन पहली बार के लिए नहीं है, लेकिन इसका महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि इस समय राज्य को संगठित नेतृत्व की जरूरत है। गठबंधन के तहत चयनित सरकार को अपनी प्राथमिकताओं में आंतरिक शांति, विकास और जनसुविधाओं की बहाली को प्राथमिकता देनी होगी। साथ ही, पिछले कुछ वर्षों में बढे सामाजिक तनाव को कम करने की दिशा में भी काम करना होगा।

नए सत्ता समीकरण के साथ सफलता का यह दौर लोगों की उम्मीदों को जगा रहा है। किसानों, छात्रों और प्राइवेट रोजगारकर्ताओं का काफी बड़ा समर्थन इस गठबंधन के पक्ष में देखा गया है। जम्मू और कश्मीर की नई सरकार को इन मुद्दों पर कारगर समाधान निकालने की चुनौती होगी।

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